हमारा अक़ीदा (विश्वास) | जानने अल्लाह

हमारा अक़ीदा (विश्वास)


मुह़म्मद बिन सालेह अल-उसैमीन

हमारा अक़ीदा

अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों, आख़िरत के दिन और तक़दीर की भलाई-बुराई पर ईमान लाना।

अल्लाह तआला पर ईमान

हम अल्लाह तआला की ʻरुबूबियतʼ पर ईमान रखते हैं। अर्थात इस बात पर विश्वास रखते हैं कि केवल वही पालने वाला, पैदा करने वाला, हर चीज़ का स्वामी तथा सभी कार्यों का उपाय करने वाला है।

और हम अल्लाह तआला की ʻउलूहियतʼ (पूज्य होने) पर ईमान रखते हैं। अर्थात इस बात पर विश्वास रखते हैं कि वही सच्चा मअबूद है और उसके अतिरिक्त तमाम मअबूद असत्य तथा बातिल हैं।

अल्लाह तआला के नामों तथा उसके गुणों पर भी हमारा ईमान है। अर्थात इस बात पर हमारा विश्वास है कि अच्छे से अच्छे नाम और उच्चतम तथा पूर्णतम गुण उसी के लिए हैं।

और हम इन मामलों में उसकी वह़दानिय (एकत्ववाद) पर ईमान रखते हैं। अर्थात इस बात पर ईमान रखते हैं कि उसकी रूबूबियत, उलूहियत तथा असमा व सिफ़ात (नाम व गुण) में उसका कोई शरीक नहीं।

अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

“वह आकाशों एवं धरती का तथा जो कुछ उन दोनों के बीच है, सबका प्रभु है, इसलिए उसीकी उपासना करो तथा उसीकी उपासना पर दृढ़ रहो। क्या तुम उसका कोई समनाम जानते हो?”

सूरह मर्यमः 65

और हमारा ईमान है कि

“अल्लाह तआला ही सत्य मअबूद है, उसके अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं। वह जीवित है। सदैव स्वयं स्थिर रहने वाला है। उसे न ऊँघ आती है और न ही नींद। जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, उसी का है। कौन है, जो उसकी आज्ञा के बिना उसके सामने किसी की सिफ़ारिश (अभिस्ताव) कर सके? जो कुछ लोगों के सामने हो रहा है तथा जो कुछ उनके पीछे हो चुका है, वह सब जानता है। और वह उसके ज्ञान में से किसी चीज़ का घेरा नहीं कर सकते, परन्तु वह जितना चाहे। उसकी कुर्सी की परिधि ने आकाश एवं धरती को घेरे में ले रखा है। तथा उसके लिए इनकी रक्षा कठिन नहीं। वह तो उच्च एवं महान है।”

सूरह अल्-बक़राः 255

और हमारा ईमान है किः

“वही अल्लाह है, जिसके अतिरिक्त कोई सत्य मअबूद नहीं। प्रोक्ष तथा प्रत्यक्ष का जानने वाला है। वह बहुत बड़ा दयावान एवं अति कृपालु है। वह अल्लाह है, जिसके अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं। स्वामी, अत्यंत पवित्र, सभी दोषों से मुक्त, शान्ति करने वाला, रक्षक, बलिष्ठ, प्रभावशाली है। लोग जो साझीदार बनाते हैं, अल्लाह उससे पाक एवं पवित्र है। वही अल्लाह सृष्टिकर्ता, आविष्कारक, रूप देने वाला है। अच्छे-अच्छे नाम उसी के लिए हैं। आकाशों एवं धरती में जितनी चीज़ें हैं, सब उसकी तस्बीह़ (पवित्रता) बयान करती हैं और वही प्रभावशाली एवं ह़िक्मत वाला है।”

सूरह अल्-ह़श्रः 22-24

और हमारा ईमान है कि आकाशों तथा धरती का राजत्व उसी के लिए है

आकाशो एवं धरती की बादशाही केवल उसी के लिए है। वह जो चाहे पैदा करता है, जिसे चाहता है बेटियाँ देता है और जिसे चाहता है बेटा देता है, या उनको बेटे और बेटियाँ दोनों प्रदान करता है और जिसे चाहता है निःसंतान रखता है। निःसंदेह वह जानने वाला तथा शक्ति वाला है।

सूरह अश्-शूराः 49-50

और हमारा ईमान है किः

उस जैसी कोई चीज़ नहीं, वह ख़ूब सुनने वाला, देखने वाला है। आकाशों एवं धरती की कुंजियाँ उसी के पास हैं। वह जिसके लिए चाहता है, जीविका विस्तृत कर देता है तथा (जिसके लिए चाहता है) थोड़ा कर देता है। निःसंदेह वह प्रत्येक वस्तु का जानने वाला है।

सूरह अश्-शूराः 11-12

और हमारा ईमान है किः

“धरती पर कोई चलने-फिरने वाला नहीं, मगर उसकी जीविका अल्लाह के ज़िम्मे है। वही उनके रहने-सहने का स्थान भी जानता है तथा उनको अर्पित किये जाने का स्थान भी। यह सब कुछ खुली किताब (लौह़े मह़फ़ूज़) में मौजूद है।”

सूरह हूदः 6

और हमारा ईमान है किः

“तथा उसी के पास परोक्ष की कुंजियाँ हैं, जिनको उसके अतिरिक्त कोई नहीं जानता। तथा उसे थल एवं जल की तमाम चीज़ों का ज्ञान है। तथा कोई पत्ता भी झड़ता है तो वह उसको जानता है। तथा धरती के अन्धेरों में कोई अन्न तथा हरी या सूखी चीज़ नहीं, मगर उसका उल्लेख खुली किताब (लौह़े मह़फ़ूज़) में है।”

सूरह अल्-अन्आमः 59

 और हमारा ईमान है कि

“निःसंदेह अल्लाह ही के पास क़यामत (महाप्रलय) का ज्ञान है। तथा वही वर्षा देता है, तथा जो कुछ गर्भाशय में है (उसकी वास्तविकता) वही जानता है, तथा कोई नहीं जानता कि कल क्या कमायेगा, तथा कोई जीवधारी नहीं जानता कि धरती के किस क्षेत्र में उसकी मृत्यु होगी। निःसंदेह अल्लाह ही पूर्ण ज्ञान वाला एवं सही ख़बरों वाला है।”

सूरह लुक़्मानः 34

और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला जो चाहे, जब चाहे तथा जैसे चाहे, कलाम (बात) करता है।

और अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम से बात की।

सूरह निसाः 164

और जब मूसा अलैहिस्सलाम हमारे समय पर (तूर पहाड़ पर) आये और उनके रब ने उनसे बातें कीं।

सूरह अल्-आराफ़ः 143

और हमने उनको तूर की दायें ओर से पुकारा और गुप्त बात कहने के लिए निकट बुलाया।

सूरह मर्यमः 52

और हमारा ईमान है कि

“यदि समुद्र मेरे प्रभु की बातों को लिखने के लिए स्याही बन जाय, तो पूर्व इसके कि मेरे प्रभु की बातें समाप्त हों, समुद्र समाप्त हो जाय।”

सूरह अल्-कह्फ़ः 109

“यदि ऐसा हो कि धरती पर जितने वृक्ष हैं, सब क़लम हों तथा समुद्र स्याही हो तथा उसके बाद सात समुद्र और स्याही हो जायें, फिर भी अल्लाह की बातें समाप्त नहीं हो सकतीं। निःसंदेह अल्लाह प्रभावशाली एवं ह़िक्मत वाला है।”

सूरह लुक़्मानः 27

और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला की बातें सूचनाओं के एतबार से पूर्णतः सत्य, विधि-विधान के एतबार से न्याय संबलित तथा सब बातों से सुन्दर हैं।

अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

“तथा तुम्हारे प्रभु की बातें सत्य एवं न्याय से परिपूर्ण हैं।”

सूरह अल्-अन्आमः 115

और फ़रमायाः

“तथा अल्लाह से बढ़कर सत्य बात कहने वाला कौन है?”

सूरह अन्-निसाः 87

तथा हम इस पर भी ईमान रखते हैं कि क़ुर्आन करीम अल्लाह का शुभ कथन है। निःसंदेह उसने बात की और जिब्रील अलैहिस्सलाम पर ʻइल्क़ाʼ (वह बात जो अल्लाह किसी के दिल में डालता है) किया, फिर जिब्रील अलैहिस्सलाम ने प्यारे नबी के दिल में उतारा।

अल्लाह तआला ने फ़रमाया

“कह दीजिए, उसको ʻरूह़ूल क़ुदुसʼ (जिब्रील अलैहिस्सलाम) तुम्हारे प्रभु की ओर से सत्यता के साथ लेकर आये हैं।”

सूरह अन्-नह़्लः 102

“और यह (पवित्र क़ुर्आन) सारे जहान के पालनहार की ओर से अवतरित किया हुआ है, जिसे लेकर ʻरूह़ुल अमीनʼ (जिब्रील अलैहिस्सलाम) आये, तुम्हारे दिल में डाला, ताकि तुम लोगों को डराने वालों में से हो जाओ। (यह क़ुर्आन) स्वच्छ अरबी भाषा में है।”

सूरह अश्-शुअराः 192-195

और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला अपनी ज़ात एवं गुणों में अपनी सृष्टि से ऊँचा है।

उसने स्वयं फ़रमाया

वह बहुत उच्च एवं बहुत महान है।

सूरह अल्-बक़राः 155

और फ़रमायाः

“तथा वह अपने बन्दों पर प्रभावशाली है, और वह बड़ी ह़िक्मत वाला और पूरी ख़बर रखने वाला है।”

सूरह अल्-अन्आमः 18

और हमारा ईमान है किः

“निःसंदेह तुम्हारा पालक अल्लाह ही है, जिसने आकाशों तथा धरती को छः दिनों में बनाया, फिर अर्श पर उच्चय हुआ, वह प्रत्येक कार्य की व्यवस्था करता है।”

सूरह यूनुसः 3

अल्लाह तआला के अर्श पर उच्चय होने का अर्थ यह है कि अपनी ज़ात के साथ उसपर बुलंद व बाला हुआ, जिस प्रकार की बुलंदी उसकी शान तथा महानता के योग्य है, जिसकी स्थिति का विवरण उसके अतिरिक्त किसी को मालूम नहीं।

और हम इस पर भी ईमान रखते हैं कि अल्लाह तआला अर्श पर रहते हुए भी (अपने ज्ञान के माध्यम से) अपनी सृष्टि के साथ होता है। उनकी दशाओं को जानता है, बातों को सुनता है, कार्यों को देखता है तथा उनके सभी कार्यों का उपाय करता है, भिक्षुक को जीविका प्रदान करता है, निर्बल को शक्ति एवं बल देता है, जिसे चाहे सम्मान देता है और जिसे चाहे अपमानित करता है, उसी के हाथ में कल्याण है और वह प्रत्येक चीज़ पर सामर्थ्य रखता है। और जिसकी यह शान हो, वह अर्श पर रहते हुए भी (अपने ज्ञान के माध्यम से) ह़क़ीक़त में अपनी सृष्टि के साथ रह सकता है।

“उस जैसी कोई चीज़ नहीं। वह ख़ूब सुनने वाला, देखने वाला है।”

सूरह अश्-शूराः 11

लेकिन हम जहमिया समुदाय के एक फ़िर्क़ा ह़ुलूलिया की तरह यह नहीं कहते कि वह धरती में अपनी सृष्टि के साथ है। हमारा विचार यह है  कि जो व्यक्ति ऐसा कहे, वह या तो गुमराह है या फिर काफ़िर। क्योंकि उसने अल्लाह तआला को ऐसे अपूर्ण गुणों के साथ विशेषित कर दिया, जो उसकी शान के योग्य नहीं हैं।

और हमारा, प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बताई हुई इस बात पर भी ईमान है कि

अल्लाह तआला हर रात, आख़िरी तिहाई में, पृथ्वी से निकट आकाश पर नाज़िल होता है और कहता हैः (( कौन है, जो मुझे पुकारे कि मैं उसकी पुकार सुनूँ? कौन है, जो मुझसे माँगे कि मैं उसको दूँ? कौन है, जो मुझसे माफ़ी तलब करे कि मैं उसे माफ़ कर दूँ?))

और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला क़यामत के दिन बन्दों के बीच फ़ैसला करने के लिए आयेगा।

अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

“निःसंदेह जब धरती कूट-कूट कर समतल कर दी जायेगी, तथा तुम्हारा रब (प्रभु) आयेगा और फ़रिश्ते पंक्तिबध्द होकर आयेंगे, तथा उस दिन नरक (दोज़ख़) को लाया जायेगा, तो मनुष्य को उस दिन शिक्षा ग्रहण करने से क्या लाभ होगा?”

सूरह अल्-फ़ज्रः 21-23


और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला

“वह जो चाहे उसे कर देने वाला है।”

सूरह अल्-बुरूजः 16

और हम इसपर भी ईमान रखते हैं कि उसके इरादे की दो क़िस्में हैं:

    इरादए कौनियाः

इसी से अल्लाह तआला की इच्छा अमल में आती है। अल्बत्ता यह ज़रूरी नहीं कि यह उसे पसंद भी हो। यही इरादा है, जो ʻमशीयते इलाहीʼ अर्थात ʻईश्वरेच्छाʼ कहलाती है।

जैसा कि अल्लाह तआला का फ़रमान हैः

“और यदि अल्लाह चाहता, तो यह लोग आपस में न लड़ते, किन्तु अल्लाह जो चाहता है, करता है।”

अल्-बक़राः 253

“तुम्हें मेरी शुभचिन्ता कुछ भी लाभ नहीं पहुँचा सकती, चाहे मैं जितना ही तुम्हारा शुभचिन्तक क्यों न हूँ, यदि अल्लाह की इच्छा तुम्हें भटकाने की हो। वही तुम सबका प्रभु है तथा उसी की ओर लौटकर जाओगे।”

सूरह हूदः 34

इरादए शरईयाः

आवश्यक नहीं कि यह प्रकट ही हो जाये। और इसमें उद्दिष्ट विषय अल्लाह को प्रिय ही होता है। जैसा कि अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

“और अल्लाह तआला चाहता है कि तुम्हारी तौबा क़बूल करे।”

सूरह अन्-निसाः 27

और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला का इरादा चाहे ʻकौनीʼ हो या ʻशरईʼ, उसकी ह़िक्मत के अधीन है। अतः हर वह कार्य, जिसका फ़ैसला अल्लाह तआला ने अपनी इच्छानुसार लिया अथवा उसकी सृष्टि ने शरई तौर पर उसपर अमल किया, वह किसी ह़िक्मत के कारण तथा ह़िक्मत के मुताबिक़ होता है। चाहे हमें उसका ज्ञान हो अथवा हमारी बुध्दि उसको समझने में असमर्थ हो

“क्या अल्लाह समस्त ह़ाकिमों का ह़ाकिम नहीं है?”

सूरह अत्-तीनः 8

“तथा जो विश्वास रखते हैं, उनके लिए अल्लाह से बढ़कर उत्तम निर्णय करने वाला कौन हो सकता है?”

सूरह अल्-माइदाः 50


और हमारा ईमान है कि


अल्लाह तआला अपने औलिया से मुह़ब्बत करता है तथा वह भी अल्लाह से मुह़ब्बत करते हैं।

“कह दीजिए कि यदि तुम अल्लाह से मुह़ब्बत करते हो, तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह तुमसे मुह़ब्बत करेगा।”

सूरह आले-इम्रानः 31

“तो अल्लाह तआला ऐसे लोगों को पैदा कर देगा, जिनसे वह मुह़ब्बत करेगा तथा वह उससे मुह़ब्बत करेंगे।”

सूरह अल्-माइदाः 54

“तथा अल्लाह धैर्य रखने वालों से मुह़ब्बत करता है।”

सूरह आले-इम्रानः 146

“तथा न्याय से काम लो, निःसंदेह अल्लाह न्याय करने वालों से मुह़ब्बत करता है।”

सूरह अल्-ह़ुजुरातः 9

“और एह़सान करो, निःसंदेह अल्लाह एह़सान करने वालों से मुह़ब्बत करता है।”

सूरह अल्-बक़राः 195

और हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला ने जिन कर्मों तथा कथनों को धर्मानुकूल किया है, वह उसे प्रिय हैं और जिनसे रोका है, वह उसे अप्रिय हैं।

“यदि तुम कृतघ्नता व्यक्त करोगे, तो अल्लाह तुमसे निस्पृह है। वह अपने बन्दों के लिए कृतघ्नता पसन्द नहीं करता है, और यदि कृतज्ञता करोगे, तो वह उसको तुम्हारे लिए पसंद करेगा।”

सूरह अज़्-ज़ुमरः 7

“परन्तु, अल्लाह तआला ने उनके उठने को प्रिय न माना, इसलिए उन्हें हिलने-डोलने ही न दिया और उनसे कहा गया कि तुम बैठने वालों के साथ बैठे ही रहो।”

सूरह अत्-तौबाः 46

और हमारा ईमान है कि

अल्लाह तआला ईमान लाने वालों तथा नेक अमल करने वालों से प्रसन्न होता है।

“अल्लाह उनसे प्रसन्न हुआ तथा वह अल्लाह से प्रसन्न हुए। यह उसके लिए है, जो अपने प्रभु से डरे।”

सूरह अल्-बय्यिनाः 8

और हमारा ईमान है कि

 काफ़िर इत्यादियों में से जो क्रोध के अधिकारी हैं, अल्लाह उनपर क्रोध प्रकट करता है।

“जो लोग अल्लाह के सम्बन्ध में बुरे गुमान रखने वाले हैं, उन्हीं पर बुराई का चक्र है तथा अल्लाह उनसे क्रोधित हुआ।”

सूरह अल्-फ़त्ह़ः 6

“परन्तु, जो लोग खुले दिल से कुफ़्र करें, तो उनपर अल्लाह का क्रोध है तथा उन्हीं के लिए बहुत बड़ी यातना है।”

सूरह अन्-नह़्लः 106

और हमारा ईमान है कि

 अल्लाह का मुख है, जो महानता तथा सम्मान से विशेषित है।

“तथा तेरे प्रभु का मुख जो महान एवं सम्मानित है, बाक़ी रहेगा।”

सूरह अर्-रह़मानः 27

और हमारा ईमान है कि

 अल्लाह तआला के महान एवं कृपा वाले दो हाथ हैं।

“बल्कि उसके दोनों हाथ खुले हुए हैं। वह जिस प्रकार चाहता है, ख़र्च करता है।”

सूरह अल्-माइदाः 64

“तथा उन्होंने अल्लाह का जिस प्रकार सम्मान करना चाहिए था, नहीं किया। क़यामत के दिन सम्पूर्ण धरती उसकी मुट्ठी में होगी तथा आकाश उसके दायें हाथ में लपेटे होंगे, वह उन लोगों के शिर्क से पवित्र एवं सर्वोपरि है।”

सूरह अज़्-ज़ुमरः 67

और हमारा ईमान है कि

अल्लाह तआला की दो वास्तविक आँखें हैं। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

“तथा एक नाव हमारी आँखों के सामने और हमारे हुक्म से बनाओ।”

सूरह हूदः 37

और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमयाः

((अल्लाह तआला का पर्दा नूर (ज्योति) है, यदि उसे उठा दे, तो उसके मुख की ज्योतियों से उसकी सृष्टी जलकर राख हो जाये।))

सह़ीह़ मुस्लिमः 293

तथा सुन्नत का अनुसरण करने वालों का इस बात पर इजमा (एकमत) है कि अल्लाह तआला की आँखें दो हैं, जिसकी पुष्टि दज्जाल के बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फ़र्मान से होती हैः

((दज्जाल काना है तथा तुम्हारा प्रभु काना नहीं है।)

और हमारा ईमान है किः

“निगाहें उसका परिवेष्टन नहीं कर सकतीं तथा वर सब निगाहों का परिवेष्टन करता है, और वह सूक्ष्मदर्शी तथा सर्वसूचित है।”

सूरह अल्-अन्आमः 103


और हमारा ईमान है कि

ईमानदार लोग क़यामत के दिन अपने प्रभु को देखेंगे।

“उस दिन बहुत-से मुख प्रफुल्लित होंगे, अपने प्रभु की ओर देख रहे होंगे।”

सूरह अल्-क़ियामाः 22-23

और हमारा ईमान है कि

अल्लाह के गुणों के परिपूर्ण होने के कारण, उसका समकक्ष कोई नहीं है।

“उस जैसी कोई चीज़ नहीं। वह ख़ूब सुनने वाला, देखने वाला है।”

सूरह अश्-शूराः 11


और हमारा ईमान है किः

“उसे न ऊँघ आती है और न ही नींद।”

सूरह अल्-बक़राः 255

क्योंकि उसमें जीवन तथा स्थिरता का गुण परिपूर्ण है।


और हमारा ईमान है कि

 वह अपने पूर्ण न्याय एवं इन्साफ़ के गुणों के कारण किसी पर अत्याचार नहीं करता। तथा उसकी निगरानी एवं परिवेष्टन की पूर्णता के कारण वह अपने बन्दों के कर्मों से बेख़बर नहीं है।


और हमारा ईमान है कि

 उसके पूर्ण ज्ञान एवं क्षमता के कारण आकाश तथा धरती की कोई चीज़ उसे लाचार नहीं कर सकती

“उसकी शान यह है कि वह जब किसी चीज़ का इरादा करता है, तो कह देता है कि हो जा, तो हो जाता है।”

सूरह यासीनः 82


और हमारा ईमान है कि

 उसकी शक्ति की पूर्णता के कारण, उसे कभी लाचारी एवं थकावट का सामना नहीं करना पड़ता है।

“और हमने आकाशों एवं धरती को तथा उनके अन्दर जो कुछ है, सबको, छः दिन में पैदा कर दिया और हमें ज़रा भी थकावट नहीं हुई।”

सूरह क़ाफ़ः 38

और हमारा ईमान अल्लाह तआला के उन नामों एवं गुणों पर है, जिनका प्रमाण स्वयं अल्लाह तआला के कलाम अथवा उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ह़दीसों से मिलता है। किन्तु हम दो बड़ी त्रुटियों से अपने आपको बचाते हैं, जो यह हैं

1- समानताः अर्थात दिल या ज़ुबान से यह कहना कि अल्लाह तआला के गुण मनुष्य के गुणों के समान हैं।
   2- अवस्थाः अर्थात दिल या ज़ुबान से यह कहना कि अल्लाह तआला के गुणों की कैफ़ियत इस प्रकार है।

और हमारा ईमान है कि

अल्लाह तआला उन सब गुणों से पाक एवं पवित्र है, जिन्हें अपनी ज़ात के सम्बन्ध में उसने स्वयं या उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अस्वीकार किया है। ध्यान रहे कि इस अस्वीकृति में, सांकेतिक रूप से उनके विपरीत पूर्ण गुणों का प्रमाण भी मौजूद है। और हम उन गुणों से ख़ामोशी अख़्तियार करते हैं, जिनसे अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ख़ामोश हैं।

हम समझते हैं कि इसी मार्ग पर चलना अनिवार्य है। इसके बिना कोई चारा नहीं। क्योंकि जिन चीज़ों को स्वयं अल्लाह तआला ने अपने लिए साबित किया या जिनका इन्कार किया, वह ऐसी सूचना है, जो उसने अपने संबंध में दी है। और अल्लाह अपने बारे में सबसे ज़्यादा जानने वाला, सबसे ज़्यादा सच बोलने वाला है और सबसे उत्तम बात करने वाला है। जबकि बन्दों का ज्ञान उसका परिवेष्टन कदापि नहीं कर सकता।

तथा अल्लाह तआला के लिए उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जिन चीज़ों को साबित किया या जिनका इन्कार किया है, वह भी ऐसी सूचना है जो आपने अल्लाह के संबंध में दी है। और आप अपने प्रभु के बारे में लोगों में सबसे ज़्यादा जानकार, सबसे ज़्यादा शुभचिंतक, सबसे ज़्यादा सच बोलने वाले और सबसे ज़्यादा विशुध्दभाषी हैं।

अतः अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कलाम में ज्ञान, सच्चाई तथा विवरण की पूर्णता है। इसलिए उसे अस्वीकार करने या उसे मानने में हिचकिचाने का कोई कारण नहीं।

Previous article Next article

Related Articles with हमारा अक़ीदा (विश्वास)

  • रसूलों पर ईमान

    मुह़म्मद बिन सालेह अल-उसैमीन

    हमारा ईमान है कि अल्लाह तआला ने अपनी सृष्टि की ओर रसूलों को भेजा। “शुभसूचक एवं सचेतकर्ता रसूल बनाकर भेजा, ताकि

    12/04/2018 5573
  • इस्लाम यह है कि

    Site Team

    आप इस बात पर विश्वास रखें कि इस सुष्टि और इस में मौजूद चीज़ों का एक उत्पत्तिकर्ता और रचयिता है, जो एकमात्र अल्लाह

    13/03/2013 3307
  • विश्वास का संकट

    Site Team

     आज की दुनिया में बुराई का अनुपात अच्छाई के मुक़ाबले में लगातार बढ़ रहा है और समाज में विश्वास का संकट पैदा हो

    21/09/2013 3403
जानने अल्लाहIt's a beautiful day