´सुलाला : प्रारम्भिक द्रव' के गुण
﴿ثُمَّ جَعَلَ نَسْلَهُ مِن سُلَالَةٍ مِّن مَّاء مَّهِينٍ﴾ [سورة السجدة : 8]
‘‘फिर उसकी नस्ल एक ऐसे रस से चलाई जो तुच्छ जल की भांति है।'' (अल-क़ुरआन, सूर: 32 आयतः 8)
अरबी शब्द ‘सुलाला‘ से तात्पर्य किसी द्रव का सर्वोत्तम अंश है। सुलाला का शाब्दिक अर्थ 'नवजात शिशु' भी है। अब हम जान चुके हैं कि स्त्रैन अण्डे की तैयारी के लिये पुरूष द्वारा स्खलित लाखों करोड़ों वीर्य शुक्राणुओं में से सिर्फ़ एक की आवश्यकता होती है। लाखों करोड़ों में से इसी एक वीर्य शुक्राणु (sperm) को पवित्र क़ुरआन ने ‘सुलाला‘ कहा है। अब हमें यह भी पता चल चुका है कि महिलाओं में उत्पन्न हज़ारों ‘अण्डाणुओं‘ (ovum) में से केवल एक ही सफल होता है। उन हज़ारों अंडों में से किसी एक कर्मशील और योग्य अण्डे के लिये पवित्र क़ुरआन ने सुलाला शब्द का प्रयोग किया है। इस शब्द का एक और अर्थ भी है किसी द्रव के अंदर से किसी रस विशेष का सुरक्षित स्खलन। इस द्रव का तात्पर्य पुरूष और महिला दोनों प्रकार के प्रजनन द्रव भी हैं जिनमें लिंगसूचक ‘युग्मक gametes´ (वीर्य) मौजूद होते है। गर्भाधान की अवधि में स्खलित वीर्यों से दोनों प्रकार के अंडाणु ही अपने-अपने वातावरण से सावधानी पूर्वक बिछड़ते हैं।